परिचय
दिल्ली शहर की भागदौड़ भरी जिन्दगी में मेघा रोज सुबह सात बजे मेट्रो स्टेशन पहुँच जाती थी। वही प्लेटफॉर्म, वही डिब्बा, वही सीट। उसकी जिंदगी एक सुव्यवस्थित घड़ी की तरह चलती थी। लेकिन आज कुछ अलग था।
प्लेटफॉर्म पर एक बुजुर्ग व्यक्ति बैठा था। वह दिखने में साधारण था, परन्तु, उसकी आँखों में चमक थी। बुजुर्ग व्यक्ति के हाथ में एक पुराना रेडियो था। वह बड़े ध्यान से कुछ सुन रहा था। मेघा का ध्यान उस ओर गया। उसने देखा कि वह व्यक्ति मुस्कुरा रहा है – एक मंद सी मुस्कान।
स्वभाव से जिज्ञासु होने के कारण मेघा की इच्छा हुई कि वह उस बुजुर्ग व्यक्ति से पूछे कि आज के इस मोबाइल के जमाने में वह रेडियो पे क्या सुन रहा है। मेघा उस बुजुर्ग व्यक्ति के पास गयी।
मेघा और बुजुर्ग व्यक्ति की बातचीत
“क्या सुन रहे हैं आप?” मेघा ने पूछा।
बुजुर्ग ने कोई उत्तर नहीं दिया और रेडियो सुनता रहा। इससे मेघा की जिज्ञासा और प्रबल हो गयी और उसने बुजुर्ग व्यक्ति के पास बैठ एक बार फिर पूछा। इसपर बुजुर्ग व्यक्ति ने मेघा की ओर गौर कर रेडियो बंद किया और बोला। “बेटी, मैं वो सुन रहा हूँ जो कानों से नहीं सुना जा सकता”। कुछ क्षण चुप रहकर बुजुर्ग दोबारा बोले, “बेटी, यह कोई सामान्य रेडियो नहीं है। यह दिलों की आवाज़ सुनता है।”
यह सुन मेघा व्यंग्य के भाव से हँसने लगी, उसे लगा कि यह बुजुर्ग पागल है। परन्तु, जब उस बुजुर्ग ने रेडियो मेघा के कान पे लगाया तो मेघा सन सी रह गयी। रेडियो में से आवाज आई कि “मैं मेहनत करके अपनी माँ को जीवन के सभी सुख देना चाहती हूँ”। दरअसल रेडियो मेघा के मन की बात बोल रहा था।
मेघा हैरान रह गई। “मतलब?”
बुजुर्ग ने कहा, “हर इंसान के दिल में कुछ न कुछ छुपा होता है – कोई इच्छा, कोई दुख, कोई खुशी। यह रेडियो उन्हें पकड़ता है।”
मेघा को सच की समझ आना
मेघा को लगा कि बुजुर्ग मज़ाक कर रहा है, लेकिन उसकी आंखों में एक अजीब सी गंभीरता थी। उसने मेघा से कहा कि इस रेडियो को कान में लगा कर जिस भी तरफ तुम देखोगी, तुम्हें उसके दिल की बात सुनाई देगी।
संकोच के बाद मेघा ने इयरफोन लगाए। पहले कुछ नहीं सुनाई दिया, फिर धीरे-धीरे आवाज़ें आने लगीं।
“काश मैं अपनी मां से कह पाता कि मैं उससे कितना प्यार करता हूं…”
“मुझे डर लगता है कि कहीं मैं अकेला न रह जाऊं…”
“मैं चाहता हूं कि मेरे बच्चे खुश रहें, भले ही मैं न रहूं…”
मेघा की आंखों में आंसू आ गए। ये आवाज़ें उसके आसपास के लोगों की थीं। उसके साथ ऑफिस में काम करने वाला युवक, जो कम बोलता था, जिसे मेघा घमंडी समझती थी। परन्तु, माँ के प्रति उसके दुःख को जान, उसके कम बोलने की वजह वह जान गयी थी। वह मेट्रो कर्मचारी, जो सब को हँस के बुलाता, दिन-रात मेहनत करता, जिससे कि उसके बच्चे खुश रहें। मेघा का सभी के प्रति नजरिया बदल चूका था।
“यह कैसे संभव है?” मेघा ने पूछा।
बुजुर्ग ने मुस्कुराते हुए कहा, “बेटी, हम सब एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं। बस हमें महसूस करना नहीं आता। यह रेडियो सिर्फ उस कनेक्शन को सुनने में मदद करता है जो हमेशा से मौजूद है।”
मेघा ने महसूस किया कि वह रोज़ जिन लोगों के बीच से गुज़रती है, उनमें से हर किसी की अपनी एक कहानी है, अपने सपने हैं, अपने डर हैं।
मेघा का जीवन बदलना
अगले दिन से मेघा का नज़रिया बदल गया। वह अब सिर्फ अपनी मंज़िल तक पहुंचने की जल्दी में नहीं थी। वह उस ऑफिस जाने वाले युवक से मुस्कुराकर नमस्ते करने लगी। सब्जी वाली औरत से पूछने लगी कि वह कैसी है।
धीरे-धीरे उसने देखा कि लोग भी उसके साथ खुलने लगे। वह युवक ने बताया कि वह अपनी मां की तबीयत को लेकर परेशान था। सब्जी वाली ने अपने बेटे के स्कूल की बात कही।
एक महीने बाद जब मेघा उस बुजुर्ग से मिली, तो उसने पूछा, “आपका रेडियो कहां है?”
बुजुर्ग हंस दिया। “बेटी, अब तुम्हें उसकी ज़रूरत नहीं। तुमने सीख लिया है कि बिना किसी यंत्र के भी दिलों की आवाज़ कैसे सुनी जाती है।”
मेघा समझ गई। रेडियो तो सिर्फ एक बहाना था। असली जादू तो खुद को दूसरों से जोड़ने में था, उनकी बात सुनने में था, उनकी परवाह करने में था।
निष्कर्ष
आज मेघा की ज़िंदगी वैसी ही व्यवस्थित है, लेकिन अब वह अकेली नहीं है। वह उन अदृश्य तारों से जुड़ी है जो हम सबको एक-दूसरे से बांधते हैं। बस हमें उन्हें महसूस करना आना चाहिए।
क्योंकि सच्चाई यह है कि हम सभी के बीच प्रेम, करुणा और समझ के अदृश्य तार हमेशा से मौजूद हैं। हमें बस उन्हें सुनना सीखना है।
समाप्त
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